Tuesday, February 9, 2021

Pandulipi

What is pandulipi is good question...
See the both photos...  
Pandu means yellow... Yes... Example of the word by name pandu, we can find in Maharabharta... And those are as PANDAVA...

Shukla and krushna both are yajurved branches...

Sun is yellow by reduction flame and we can see white lights...

Whatever you write on copper plate will getting chamicle reaction and convert in different colours after oxidation... Mostly red but copper colour is unique way matches with panch dhaatu...

Pandu, Pitambar, Piruz, are one of light colour in based form of yellow...

Kiramji means red

Shubhra, Shukla means white...

Jay Gurudev Dattatreya

Jay Hind


पाण्डुलिपि या मातृकाग्रन्थ
 एक हस्तलिखित ग्रन्थविशेष है । इसको हस्तप्रति, लिपिग्रन्थ इत्यादि नामों से भी जाना जाता है। आङ्ग्ल भाषा में यह Manuscript शब्द से प्रसिद्ध है इन ग्रन्थों को MS या MSS इन संक्षेप नामों से भी जाना जाता है। हिन्दी भाषा में यह 'पाण्डुलिपि', 'हस्तलेख', 'हस्तलिपि' इत्यादि नामों से प्रसिद्ध है । ऐसा माना जाता है कि सोलहवीं शताब्दी (१६) के आरम्भ में  विदेशियों के द्वारा संस्कृत का अध्ययन आरम्भ हुआ । अध्ययन आरम्भ होने के पश्चात इसकी प्रसिद्धि  सत्रहवीं शताब्दी के अन्त में और अठारवीं शताब्दी के आरम्भ में मानी जाती है । उस कालखण्ड में  भारत में  स्थित मातृकाग्रन्थों का अध्ययन एवं संरक्षण विविध संगठनों के द्वारा किया गया ।

पाण्डुलिपि (manuscript) उस दस्तावेज को कहते हैं जो एक व्यक्ति या अनेक व्यक्तियों द्वारा हाथ से लिखी गयी हो। जैसे हस्तलिखित पत्र। मुद्रित किया हुआ या किसी अन्य विधि से, किसी दूसरे दस्तावेज से (यांत्रिक/वैद्युत रीति से) नकल करके तैयार सामग्री को पाण्डुलिपि नहीं कहते हैं।

मातृकाग्रन्थों का मुख्य उद्देश्य भारतीयज्ञान की अतिप्राचीन परम्परा का संरक्षण है । वेदों के  गंभीर ज्ञान से लेकर पञ्चतन्त्र की बालकथाओं तक संस्कृत में विषय-विविधता विद्यमान है। हजारों वर्षों से सङ्कलित और संरक्षित यह ज्ञान युगों युगों से चला आ रहा है । अंत: मातृकाग्रन्थों या पाण्डुलिपियों  का इतिहास ही भारतीयपरम्परा का  इतिहास माना जाता है । बल-विक्रम और आयु के साथ कालान्तर में मनुष्य की स्मृतिशक्ति का ह्रास हुआ । जिस  ह्रास के कारण ज्ञान का और शोधप्रबन्धों का रक्षण करने के लिए मातृकाग्रन्थों की  वैज्ञानिक  पद्धति का उपयोग आरम्भ हुआ । मातृकाग्रन्थ अनेक प्रकार के होते हैं , परन्तु उनमें ताडपत्रभोजपत्र, ताम्रपत्र और सुवर्णपत्र आदि  प्रसिद्ध प्रकार हैं । वर्तमान में सर्वाधिक मातृकाग्रन्थ भोजपत्रों और ताडपत्रों में प्राप्त होते हैं । ताडपत्र लौह लेखनी से लिखे जाते थे । मातृकाग्रन्थों के लेखन में  विशिष्ट साधन और कौशल की अपेक्षा होती है । मातृकाग्रन्थ के लेखक विद्वान और कलाओं से पूर्ण (कुशल) होने चाहिए । जर्मनी देश के वेद विद्वान  मैक्समूलर (१८२३-१९००) ने अपनी पुस्तक में लिखा है कि "इस समस्त संसार में ज्ञानियों और  पण्डितों का देश एकमात्र भारत ही है, जहाँ विपुल ज्ञानसम्पदा हस्तलिखित ग्रन्थों के रूप में सुरक्षित है "।

पाण्डुलिपि अपनी रक्षा के लिये क्या कहती है, देखें-

जलाद्रक्षेत्तैलाद्रक्षेद्रक्षेच्छिथिलबन्धनात्।
मूर्खहस्ते न मां दद्यादिति वदति पुस्तकम् ॥
( मुझे जल से, तेल से, ढ़ीले बन्धन (बाइंडिंग) से बचायें। मुझे मूर्ख के हाथ में नहीं थमाना चाहिये - ऐसा पुस्तक कहता है।

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