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Sunday, March 7, 2021

विश्व स्त्री दिन ओर सासु की जन्मदिन पर विशेष नोंध

बॉलीवुड की फ़िल्म का गहरा प्रभाव रहा।

एक फ़िल्म है "मन", पर उस का डायलॉग था
जिसमे एक मित्र उसके दूसरे मित्र देव से बात करता है। जिसमे देव नामक पात्र "मेरा भारत महान" का साइन बोर्ड बनाता दिखता है।

मित्र : देव, मेने तुम्हारी औरत बेच दी।
देव : अच्छा!!!!
मित्र: पूरे 50000 मिले।
देव:  दूसरी वाली का क्या हुआ???
मित्र: उसको भी बेच डालूंगा, उस छमिया के तो पूरे एक लाख लूंगा।

वही पर एक पारसी स्त्री बोयकट बालों वाली आती है ओर जोरसे थप्पड़ लगाती है। मित्र पूछता है मारा क्यों?

तो कहती है बेशर्म, बेहया मर्द, दलाल कहिके, शर्म नही आती?? तेरे जैसे का तो खोपड़ी तोड़के कोपरा पाक बना देना चाहिए।

देव जोरसे हंसता है। और बताता है कि वह एक औरत का चित्र था ओर उसके मित्र ने उसका चित्र बेचा।


बात सरल होती है। पर समझने का जरिया ओर समझ न हो ने के कारण बनती हुई समस्या का हल हाथ मे हो तो अच्छा रहे।

विश्व स्त्री दिन पर कई लोगों नेकी नई बात। लेकिन आज बुरका न पहन ने में ही समझ है ऐसी बात सोचनीय रूप से स्वीट्ज़र लैंड में नियम के तौर पर आवकार्य रही। 51 प्रतिशत लोगों ने नियम को सराहा।

जहां लियो नारदो विंची की स्त्री तस्वीरों को कोई आज तक विशेष आशीष के कारण कोई हिला नही पाया है। वही आज remini application से हर कोई पुराने चित्र में प्राण फुके जा रहे है मोबाइल से।

अप्लिकेशन लिंक दिया है सबूत के तौर पर।



आज अपनी खुदकी बीवी की मम्मी , जो मेरी खुदही की सासुमा है उनकी कही बात मानकर सुतराउ कापड की धोती पहनी।

मैं आजभी कहता हूं, जिसे भी मान देना चालू करो, उसे फिर सामाजिक टकराव में बंध मत करो। यही समाज दर्पण की नींव है। वही आपकी सोच लोगों के दिलो दिमाग पर कायम रखने की तकनीक हो सकती है।

विश्व स्त्री दिन पर कई लोगों का स्पंदन होगा। 

मेरा भी है।

"माँ" आर्य सभ्यता का यह शब्द आज कही कही मज़ाक बन गया है। जाना और माना कि वेद का स्वरूप अपौरुषेय है किंतु स्त्री का मन भ्रामक क्यों बना दिया जाता है??

आज हर तरफ नहाओ, खाओ, पियो, कपड़े पहनो के अलावा जितना हो सके उतना टूरिज़म को बढाओ ही क्यों है। पृथ्वी कम रही तो चन्द्र ओर मंगल पकड़ लिया। मोबाइल से घरमे रहकर मंगल की सैर रॉकेट से कराने के लिये ऑनलाइन वेबसाइट ढूंढ़के ज़मीन भी खरीद लो??? 

स्त्री का मान हो अच्छी बात है पर उसका उपयोग करने कराने वाले को पकड़ेंगे तो न्याय कोन करेगा??? आंख तो उसके पास भी होगी, क्योकि अल्लाह और शैतान सहित मनुष्य का क्रमीत कर्म, अनुभव से कह रहा हु, बिना वजूद का होता है। 

आज स्त्री का बिकना जिस देशो में धंधा बनाया है, जिससे टैक्स यानी कर वसूल करते हैं, तो पुराना त्रावणकोर राज्य जो फीलहाल केरलका  नामक है वहीँ मुलाकर्म जो स्त्री को नग्न रखने वाली बात थी स्तन प्रदेश से, वह याद आता है। ऊंचे घरकी स्त्रीकोही उपवस्त्र ओर निचली कॉम की स्त्री को स्तन खुले रखने पड़ते थे, ढकने हो तो टैक्स यानी कर देना होता था।  इसके ऊपर फिल्मी लिंक दी है। देखना हो तो देखो।


आज के प्रधानमंत्री भी बेटी पढ़ाते है लेकिन जो बेटी पढ़के राजकारण में उनकी बरोबरि करे तो उस पर हर्दय से वोट लेने के लिए हास्य व्यंग् भी करने से चूकते नही। कई नामी लोग तीन चार शादी करते हैं। और बच्चे का नाम भी तैमूर लंग से जोड़ देते हैं। 

एक हसि की बात, एक फिल्ममे तकया कलाम था, "नस्ले तैमूर के जाहोजलाल की सौगंद"। कुछ अजीब किन्तु सचमे तैमूर नामक बच्चे के मम्मी के परदादाके यह डायलॉग मोगलेआज़म में बोल है।

स्त्री को कितना भी मान दे पर वह खुद कहि पर जब भ्रामक ओर भ्रांति से बात करे तो उसका अवमूल्यन, निर्मूलन होता ही है। लेकिन निर्माल्य रूपसे अगर मान दे रहे है तो ही आंख छिप मोती ठहर जाता है।

कलही मेने अपनी सास से कहा है कि हम जिस स्थिति की बात बताते है की हमे चिंता है, वही उससे अलग ही खुदकी स्थिति का निर्देशन करते है।

मेरी बीवी, ओर सासुजी कहते है कि हमे रुपयों का टेंशन है, मेरे ससुर 60 लाख तक का debt रखकर गये जो चुकाना हे। वही दूसरा एक दलाल आता है तो उसे कहते है कि 50 लाख तक का फ्लैट हम अभी के अभी ले सकते है । 

मेरी समझ से परे है यह बात। 

मेरी बच्ची भी धीमे स्पंदन में मुझे मनुष्य बेचने वाला कह गई।

"मैं कोन हूं" कि जगह "मैं क्यों हूँ"? यह खेद है। तभी विश्व दिन के तहत मन फ़िल्म की बात याद रखकर लिख दिया।

मम्मी भी कल कह चुकी "तू मर" लेकिन भला हो उस घड़ी के अद्रश्य वाणी देवी का जो कहला गई मुझसे की "मैं स्वर्ग में जाऊंगा क्योकि मुझे भारत की आर्थिक उन्नति करनी है" भगवद गीता के बोल याद रह गए।

ज्यादा नही लिखना है क्योंकि स्त्री पर लिखी हर एक वात को कई बुज़ुर्ग लोग व्यावसायिक तोर से "र" मन मे लेते है।

अंग्रेजी में क्षेत्र यानी "क" चार तरह से तो संस्कृत में "र" सात तरह से तो उर्दू में "ल" का प्रावधान विषय से विशेष है। और वेद उपनिषद की कथाए भी विशिष्ट ही है। 

इस्लाम मे लहिया यानी जो वही लिखता है उसका भी प्रावधान विशिष्ट है , जो फिलहाल के स्टेनोग्राफी से कम नही। मतलब न्यायाधीश जो बोले वही खूबी से झड़प से लिखना फिर उसे टाइप करना।

जय गुरुदेव दत्तात्रेय।

जय हिंद।

जिगर जैगीष्य





શબ્દ રમત રમણે ની રમુજ

મૂળ પ્રાર્થના असतो मा सदगमय ॥  तमसो मा ज्योतिर्गमय ॥  मृत्योर्मामृतम् गमय ॥ સામાન્ય મજાક અન્ન એવો ઓડકાર ખરો, પણ .. દરેક મનુષ્યને પોતાની જ વા...