परिक्रमा काबा के कोने में लगे 'हजर अस्वद' नामक काले पत्थर से शुरू होती है। अगर संभव हो तो इस चूमना या छूना होता है। अक्सर बड़ी भीड़ के कारण यह मुमकिन नहीं होता इसलिए पत्थर की तरफ़ ऊँगली करना या उसकी तरफ़ हथेली करना भी पार्याप्त माना जाता है। हर दफ़ा पत्थर के पास आते हुए 'तकबीर प्रार्थना' ('अल्लाह ओ अकबर') कहनी होती है। पुरुषों को पहली तीन परिक्रमाएँ तेज़ी से और बाद की चार परिक्रमाएँ साधारण चलने की गति पर करने को कहा जाता है।
परिक्रमाओं के बाद मुस्लिम पास ही स्थित 'मक़ाम इब्राहिम' पर जाते हैं जहाँ वे दो प्रार्थनाएँ कहते हैं और पवित्र 'ज़मज़म के कुँए' से पानी पीते हैं। मुस्लिमों को कहा जाता है कि वे कम से कम दो तवाफ़ ज़रूर करें। पहली तवाफ़ हज के हिस्से के तौर पर और दूसरी मक्का छोड़ने से पहले।
Baitullah means...
खुदा का घर।
मुसलमानों का काबा तीर्थ।
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