कथा और औषध, अंदक और वीर्यक
श्रद्धा और श्रद्धेय कभी खत्म नही होते।
अंतिमोद्देश्य सूक्त सेभी बहेतर है
निर्वाह से निर्वाण, स्थगित से मोक्ष।
पक्ष, साध्य, साबित करना प्रमेय है।
जीवन प्रणाम से सुधरता है, तय है।
पृथ्वी पे बच्चा तभी सुरक्षित जब सूर्य है।
मातापिता तभी सुरक्षित जब चन्द्र है।
जहां "झ" का रंग भी तय है वह अवधूत,
आज भी श्री रंग से पहचाने जाते है।
रंगोली भी जीवन का अभिन्न अंग है।
रविवार है तो ही शनि और सोम है।
त्रसरेणु की बात भी लिखी है और
"जी नाम" से संत मेकण को भी जाना है।
हम क्या है, क्यों है, वह मत सोचो।
जवाब तो कब का मिला हुआ है मुझे।
जीवन क्या है? प्रश्न उचित अनुचित जवाबसे।
उधार चुकाओ, जीवन जिओ ओर जिने दो।
जय गुरुदेव दत्तात्रेय, जय हिंद
जिगरम जैगीष्य
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