१. ईशावास्योपनिषद् - शुक्ल यजुर्वेद
ईश जहां है वह निर्देशन करने वाला उसकी गंध का सुगंध की परिभाषा में
२. केनोपनिषद् - साम वेद
यह सब किसने किया ऐसे । यहां केन यानी कौन।
३. कठोपनिषद् - कृष्ण यजुर्वेद
कठ यानी काष्ठ लकड़ी या वृक्ष के बारेमे या वृक्ष की जाती की पहचान के बारेमे।
४. प्रश्नोपनिषद् - अथर्व वेद
प्रश्न यानी यहां सज्ञान संज्ञा से चिह्नित के साश्चर्य को बताना पहचानना के बारेमे
५. मुण्डकोपनिषद् - अथर्व वेद
मुंड यानी शिखा धारण करी हो ऐसा सिर जो पढ़ सकता हो। और वह भी किसी के क्षेत्र से जुड़कर नई बात को पहचानना।
६. माण्डूक्योपनिषद् - अथर्व वेद
अम स्वरूपिय अंड का खुद का भी यजन है ऐसे समजने में विवरण के बारेमे।
७. ऐतरेयोपनिषद् - ऋग्वेद
जो भी पढा हो वह ऊपर आने से ज्ञान वर्धक का प्रबंध करने हेतुक । ऐ यानी ऐश्वर्य, तरे यानी कि या जैसे कि दूध की मलाई जो ऊपर रहकर दूध नीचे रखती है। यहां मलाई दूध से ऊपर आने से जो दिखता है ऐसे समजे।
८. तैत्तरीयोपनिषद् - कृष्ण यजुर्वेद
जो मलाई ऊपर आई उसके भी ज्यादा स्वरूप को उबालेंगे तो घी और मावा बनेगा ऐसे दूध और मलाई को अलग करने की बात वह भी पृथ्वी तल पर क्षेत्रीय संचारमे।
९. श्वेताश्वतरोपनिषद् - कृष्ण यजुर्वेद
यहां समज़समज़ में अलगाव है।
श्वेत अश्व तर या श्वेत अश्वेत "र" यह सोचनीय है। अबतक बहुत कुछ अपभ्रंश हो चुका है। जैन में श्वेताम्बर ओर दिगम्बर की बात भी है। श्वेत यानी सफेद, जो स्वच्छ की ओर हो। अश्वेत यानी कला से काला जो शायद ही स्वच्छ की ओर हो।
१०. बृहदारण्यकोपनिषद् - शुक्ल यजुर्वेद
बृहद यानी बहुत बड़ा और अरण्य यानी अ कार रूपी "र" को प्रयोजन निश्चित है, इस प्रकार "ण्य" संज्ञा से भेदी बात । यानी कोई भी रजस्वला या अम्बा स्वरूप का पुरुष प्रकृति के साथ का यजन।
११. छान्दोग्योपनिषद् - साम वेद
यहां जो यजन है उसका ईंद, तेज का दूसरा अलगाव। छंद अलंकार रूपी आभूषण कह कर उसे योग्य रूपसे शब्द से ऊर्जा वान करने की बात, ऐसे समझने की बात। जो निर्मल रूपसे स्वच्छ ही हो।
१. ईशावास्योपनिषद् - शुक्ल यजुर्वेद
२. केनोपनिषद् - साम वेद
३. कठोपनिषद् - कृष्ण यजुर्वेद
४. प्रश्नोपनिषद् - अथर्व वेद
५. मुण्डकोपनिषद् - अथर्व वेद
६. माण्डूक्योपनिषद् - अथर्व वेद
७. ऐतरेयोपनिषद् - ऋग्वेद
८. तैत्तरीयोपनिषद् - कृष्ण यजुर्वेद
९. श्वेताश्वतरोपनिषद् - कृष्ण यजुर्वेद
१०. बृहदारण्यकोपनिषद् - शुक्ल यजुर्वेद
११. छान्दोग्योपनिषद् - साम वेद
सामवेद के दो उपनिषद छान्दोग्य ओर केन महत्व संगीत प्रधान से है। आअहुआ की मात्रा से किसका आखिर में स्वच्छ रूपी तेजोमय "ह" कार "अ" कार रूपी "र" आयाम में नवग्वो दशगवो रहा यह तय करने की बात है। जो न्यास ओर विन्यास के प्राणायाम से जुड़ी है।
जय गुरुदेव दत्तात्रेय, जय हिंद
जिगरम जैगीष्य
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