All four Vedas first shlok, mantra or rucha
Rugved
अग्निमीळे पुरोहितं यज्ञस्य देवमृत्विजम् । होतारं रत्नधातमम्॥१॥
हम अग्निदेव की स्तुति करते हैं । (कैसे अग्निदेव ?) जो यज्ञ (श्रेष्ठतम पारमार्थिक कर्म) के पुरोहित (आगे बढ़ाने वाले), देवता (अनुदान देने वाले), ऋत्विज् (समयानुकूल यज्ञ का सम्पादन करने वाले), होता (देवों का आवाहन करने वाले) और याजकों को रत्नों से (यज्ञ के लाभों से) विभूषित करने वाले हैं॥१॥
1. I Laud Agni, the chosen Priest, God, minister of sacrifice, The hotar, lavishest of wealth.
Yajurved
इषे त्वा । ऊर्जे त्वा । वायव स्थ । देवो वः सविता प्रार्पयतु श्रेष्ठतमाय कर्मण आ प्यायध्वमघ्न्या इन्द्राय भागं प्रजावतीरनमीवा अयक्ष्मा मा व स्तेन ईशत माघशँसो ध्रुवा अस्मिन्गोपतौ स्यात बह्वीः । यजमानस्य पशून्पाहि ॥१॥
हे यज्ञ साधनो ! अन्न की प्राप्ति के लिए सवितादेव आपको आगे बढ़ाएँ । सृजनकर्ता परमात्मा आपको तेजस्वी बनने के लिए प्रेरित करें । आप सभी प्राण स्वरूप हों । सृजनकर्ता परमेश्वर श्रेष्ठ कर्म करने के लिए आपको आगे बढ़ाएँ। आपकी शक्तियाँ विनाशक न हों, अपितु उन्नतिशील हों । इन्द्र (देव-प्रवृत्तियों) के लिए अपने उत्पादन का एक हिस्सा प्रदान करो । सुसंतति युक्त एवं आरोग्य-सम्पन्न बनकर क्षय आदि रोगों से छुटकारा पाओ । चोरी करने वाले आपके निर्धारक न बनें । दुष्ट पुरुष के संरक्षण में न रहो । मातृभूमि के रक्षक की छत्र-छाया में स्थिर बनकर निवास करो । सज्जनों की संख्या में वृद्धि करो तथा याजकों के पशु- धन की रक्षा करो॥१॥
1. THEE for food. Thee for vigour. Ye are breezes. To noblest work God Savitar impel you. Inviolable! swell his share for Indra. No thief, no evil-minded man shall master you rich in off-spring, free from pain and sickness. Be constant, numerous to this lord of cattle. Guard thou the cattle of the Sacrificer.
Saamved
अग्न आ याहि वीतये गृणानो हव्यदातये । नि होता सत्सि बर्हिषि॥१॥
हे प्रकाशक एवं सर्वव्यापक अग्निदेव ! हवि को गति देने (वीति) के लिए आप पधारें । आपकी सब स्तुति करते हैं। यज्ञ में हम आपका आवाहन करते हैं; क्योंकि आप सब पदार्थों को प्रदान करने वाले हैं॥१॥
1. Come, Agni, praised with song, to feast and sacrificial offering: sit As Hotar on the holy grass!
Atharva Ved
ये त्रिषप्ताः परियन्ति विश्वा रूपाणि बिभ्रतः । वाचस्पतिर्बला तेषां तन्वो अद्य दधातु मे ॥१॥
ये जो त्रिसप्त (तीन एवं सात के संयोगी विश्व के सभी रूपों को धारण करके सब ओर संव्याप्त-गतिशील हैं, हे वाचस्पते ! आप उनके शरीरस्थ बल को आज हमें प्रदान करें ॥१॥
1. Now may Vāchaspati assign to me the strength and powers of Those Who, wearing every shape and form, the triple seven, are wandering round.
All four Vedas last shlok, Mantra or rucha
Rugved
समानी व आकूतिः समाना हृदयानि वः । समानमस्तु वो मनो यथा वः सुसहासति॥४॥
हे स्तोताओ (मनुष्यो) ! तुम्हारे हृदय ( भावनाएँ) एक समान हों, तुम्हारे मन (विचार) एक जैसे हों, संकल्प (कार्य) एक जैसे हों, ताकि तुम संगठित होकर अपने सभी कार्य पूर्ण कर सको ॥४॥
4. One and the same bt your resolve, and be your minds of one accord. United be the thoughts of all that all may happily agree.
Yajurved
हिरण्मयेन पात्रेण सत्यस्यापिहितं मुखम् । यो सावादित्ये पुरुषः सो सावहम् । ओ३म्खं ब्रह्म ॥१७॥
सोने के (चमकदार-लुभावने) पात्र से सत्य का मुख (स्वरूप) ढंका हुआ है । (आवरण हटने पर पता लगता है कि) वह जो आदित्यरूप पुरुष है, वही ( आत्मरूप में) मैं हूँ । 'ॐ(अक्षर) आकाशरूप में ब्रह्म ही संव्याप्त है॥१७॥
17. The Real's face is hidden by a vessel formed of golden light. The Spirit yonder in the Sun, the Spirit dwelling there am I. OM! Heaven! Brahma!
Saamved
स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवाः स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः । स्वस्ति नस्तार्क्ष्यो अरिष्टनेमिः स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु॥ ॐ स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु॥३॥
अति यशस्वी इन्द्रदेव हमारा कल्याण करने वाले हों । सर्व-ज्ञाता पूषादेव हमारा मंगल करें । अहिंसित आयुध वाले गरुड़ हमारे हितकारक हों । ज्ञान के अधीश्वर बृहस्पति देव हमारा कल्याण करें॥२७॥
3. Illustrious far and wide, may Indra bless us, may Pushan bless us, master of all riches! May Tarkshya with uninjured fellies bless us! Brihaspati bestow on us his favour! Brihaspati bestow on us his favour!
Atharva Ved
पनाय्यं तदश्विना कृतं वां वृषभो दिवो रजसः पृथिव्याः । सहस्रं शंसा उत ये गविष्टौ सर्वामित्तामुप याता पिबध्यै ॥९॥
हे अश्विनीकुमारो ! अन्तरिक्ष से पृथ्वी पर जल की वृष्टि करने वाला आपका कार्य अत्यन्त सराहनीय है। गौओं को खोजने जैसे सहस्रों पुण्य कार्यों के समय सोमरस पान करने के लिए आप यहाँ पधारें ॥९॥
9. Asvins, that work of yours deserves our wonder, the Bull of firmament and earth and heaven; Yes, and your thousand promises in battle. Come near to all these men and drink beside us.
There's little unique tranquility you can gain if you understand the first four and the last four shlok ... See read and understand..
Special notes
All eight mantra are related to body, Agni means fire, vayu means AIR, water (Ved has more than 60 names of water used by Rushi for specific ways special reason for such important confirm conditions of body) Earth's rajas tatva from the sky or space...
There is a word in sanskrut अटव्याम (atavyaam) and the same nerve cell is giving the opportunity to give explaination about the said all Vedas short comprehensive notes...
...once i had watched the Hollywood film clip that shows that one fire ball as look like same as the nerve cell, wanted to touch human BODY of girl & boy and both are wanted to save self and henceforth reached at bus's inner side and running bus... Some how that film got science fiction category but the concept is understandable by us after reading the 8 or eight shlok of Vedas...
JAY Gurudev Dattatreya
JAY HIND
Jigar JAIGISHYA
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