Lru ल्रू एक प्राचीन स्वर है। कैसे वह आज k suresh के घनपाठी श्लोक को पढ़ते, सुनते पता चला। जो वास्तव में अश्वमेघ मन्त्र के श्लोक में आया हुआ दिख गया। ओर इसकी जानकारी श्री मुरब्बि के का शास्त्री से मिली। उनको प्रणाम।
शब्द है। अक्लृप्ता
में कई दिनसे अवधव में था कि ल्रू को उपयोग कैसे करते है। गूगल से भी कम ही पता चला था
यहां जहां वह पंक्तिआती है वह स्थानक का स्क्रीन शॉट लिया है और उसकी लिंक नीचे दी है। आप पढ़ ओर सुन सकते है।
अब अग्निपुराण एकाक्षर कोष, संस्कृत मातृका ओर संधि विग्रह से अकलुरुपता का मतलब जाने तो महत्व आधे अक्षरों का होताहै।
अ यानी अ काररूपी तत्व
क्ल यानी जहां ल कार का आधे क्षेत्रीय क से जुड़ा हुआ ऊर्जा तत्व उर यानी शक्तिसंचय करने या कराने वाला स्त्रोत
ल्रू कार को कैसे स्वर से जोड़ा है वह पता चलता है।
यहां आधा र स्वर बड़े ऊ से जोड़ा है जो बड़ा रक्षकसे जाना जाता है।
र कार सात रूपसे संस्कृत ने लिए है।
यहां कीबोर्ड की ओर सॉफ्टवेर की कुछ परिसीमा होने से वह शब्द केमेरा ट्रांसलेशन एप्पसे कॉपी कर लिखकर अलग किया है।
अब अक्लृप्ता का अर्थ समझे तो।
अ कार रूपी तत्व का आधे क्षेत्र में (यानी आधा क) ल्रू यानी ल कारके उर यजन से जुड़कर या जुड़ा हुआ आधे पंच महाभूत तत्व से, उसकी साक्षी के रूप में पृथ्वी तल पर दिखा जाना।
जय गुरुदेवदत्तात्रेय
जय हिंद
जिगरम जैगीष्य
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