Monday, April 12, 2021

आर्यावर्त की प्राचीन वैदिक संस्कृत

राज़ की बात.....

आर्यावर्त यानी 
आ जो अ कार रूपी है उसका निर्देशन।
र्य यानी उसीका यजन जो आधे र रूपी मात्रा में गोचर है।
आवर्त यानी तास, पीरियड, साईकल, अनंत नही।

संस्कृत भाषा विश्व की प्राचीन भाषा....देव भाषा....
आइये जानते हैं संस्कृत के रहस्य...

संस्कृत भाषा की सबसे महत्वपूर्ण विशेषता है....
सन्धि.....सन्धि होने से स्वरूप और उच्चारण बदल जाता है....उस बदले हुए उच्चारण में जिह्वा आदि को कुछ विशेष प्रयत्न करना पड़ता है....

ऐंसे सभी प्रयत्न एक्यूप्रेशर चिकित्सा पद्धति के प्रयोग हैं...सभी उच्चारणों में विशेष आभ्यंतर प्रयत्न होने से एक्यूप्रेशर चिकित्सा पद्धति का सीधा प्रयोग अनायास ही हो जाता है....

जिसके फल स्वरूप मन बुद्धि सहित समस्त शरीर पूर्ण स्वस्थ एवं नीरोग हो जाता है....

इन समस्त तथ्यों से सिद्ध होता है कि संस्कृत भाषा केवल विचारों के आदान-प्रदान की भाषा ही नहीं ,अपितु मनुष्य के सम्पूर्ण विकास की कुंजी है....यह वह भाषा है, जिसके उच्चारण करने मात्र से व्यक्ति का कल्याण हो सकता है....इसीलिए इसे देवभाषा और अमृतवाणी कहते हैं......

अतः अधिकांश मन्त्र संस्कृत भाषा में पाए जाते है.....
इश्क सूफियाना....
प्रणाम.....

ज्यादातर जहां तक हाथ और मन: मस्तिष्क का शब्दोच्चारण से संलग्न विधेय देखें तो वैदिक पद्धति में मन्त्र बोलते समय मगज से याद रखे हुए शब्दों को जिह्वा से बाहर निकालते समय हाथों को ऊपर नीचे, दाएं बाएं, मुष्टिका, अंगुली मुद्रा से हर बार विविध अवस्था मे पाया जाता है। 

इस प्रकारका वैदिक उच्चारण परा अपरा प्रकृति को सीधा आह्वाहन कर शक्ति स्त्रोत को सीधा यजमान के यज्ञ में संकलन करता है।

जो ब्रह्म हम देख नही पाते वह ऊर्जा स्रोत से सीधा यज्ञ के ज़रिए प्रणिपात हो जाता है, जब मन्त्रके शब्द मस्तिष्क से याद रख कर मुह से बोले जाने पर हाथो की निश्चित गतिमय स्वरूप से अग्नि से परम धिष्ण्याः स्वरूप पकड़ते है तभी फल स्वरूप अर्क से नवचेतन ऊर्जा आती है।

मेरी माँ जिसे लटकती सलाम कहती थी, वह मुसलमानी अंदाज़ से हाथो को ऊपर नीचे शरीर को ज़ुका कर करना वह किसीभी अग्नि मय स्तर रूपी अम्भन  को ऊर्जा से प्रताड़ित करा सकता है।

ख्रिस्ती जो शरीर रूपी कायाग्नि को क्रॉस बनाते है वह भी ऊर्जा का संचार करने वाला विद्युत वहनीय शरीर ही ब्रह्म को निर्देशन रूपसे कहते है।

संस्कृत की वैदिक भाषाकीय चिह्न, जो देवनागरीय लिपी से ऊपर मात्रा जैसा, शब्दो की नीचे रेखा जैसा, कहि पर आधे चंद्र जैसा आता है, वह हाथो की हलचल का निर्देशन करता है। यहां तक वह हाथों की मुद्रा भी सचेतन ऊर्जा स्रोत का स्वरूप बन सकती है।


Practice makes man perfect.

उदाहरणीय स्वरूप यह लिंक का फिल्मांकन देखे।


Jay Gurudev Dattatreya
Jay Hind
जय गुरुदेव दत्तात्रेय
जय हिंद

जिगरम जैगीष्य
Jigaram Jaigishya



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