जन संख्या नियंत्रण और इकोनॉमी पर विचार
यह असाधारण बात ही है।
सरदार वल्लभजी ने भारत को एक किया, बाद में राजकीय प्रलोभन दिखने से और भाषाकीय बाबत से राज्य बने।
और फिर से कुछ खतरे को महसूस करके छोटे विपक्ष को राज्य की खटपट में लाने के लिऐ एक दो राज्य बने।
सिंध में से पंजाब हरियाणा
हरियाणा से दिल्ली
मध्य प्रदेश में से छत्तीसगढ़
आंध्र में से तेलांगना
उत्तर प्रदेश से उत्तरांचल।
व्यक्ति की जनसंख्या को ध्यान में रख कर अच्छे कौशल से राज करने के हेतुक यह कार्य हुआ।
फिरभी जन संख्या बढ़ती ही रही।
अब तो कोई नई पार्टी भिन्न रुपसे नही है।
और खर्च का हिसाब जोड़ नही पाने की ताज्जुब वजह से राज्यों में भविष्य का आकलन विक्षिप्त ना हो उस कारण जनसंख्या नियम की जरूर लगी।
आज हर व्यक्ति भारतीय पर तकरीबन 10 से 15 हजार का भारतीय खर्चे का ऋणी है। शायद यह कम भी है और कम होसकता है लेकिन जिस वजह से कम नहीं हो पा रहा, वह है अंतर्राष्ट्रीय रुपए की कमजोरी।
मुझे यकीन हे की जनसंख्या बस्ती गंनत्री का सर्वेक्षण गलत ही हुआ होगा।
फिरभी आज बड़े शहर में प्रॉपर्टी टैक्स और कई छोटे छोटे टैक्स की प्रतिशत बढ़ने से महंगाई में पब्लिक पर भारण यानी बोझ ज्यादा हुआ है। और सरकारी पगार में हर बार न जाने कैसे भत्ता बढ़ ही जाता है।
कलभी 11 से 17 प्रतिशत महंगाई भथा बढ़ी है।
व्यक्ति गत तोरपे खानगी, निजी, प्राइवेट कंपनी के पगार का स्टैंडर्ड इतना नहीं है। शायद सरकार मिनिमम वेज एक्ट को सरकारी धारा धोरन नही दे सकती। तभी एक बच्चे वाले को टैक्स के लिए स्कीम में डाल रही है। लेकिन कई लोग तो 10 से 15 हजार ही प्रति माह कमाई लेते है। उनका क्या????
अभी मुख्य बात आती है की अगर बस्ती कम भी हुई तो क्या सरकार दो में से एक राज्य करेगी क्या?????
भावी के सवाल को यह बात पता रहे तो अच्छा है।
जय गुरुदेव दत्तात्रेय
जय हिन्द
जिगरम जैगिष्य जिगर:
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